Unfold – अब बस जीना चाहता हूँ

“प्लीज, मुझसे सारी उम्मीदें छोड़ दो…
थक चुका हूँ मैं उम्मीदें पूरी करते-करते।

कभी माँ-बाप की… कभी भाई-बहन की,
कभी वाइफ की, कभी दोस्तों की,
कभी पार्टनर की… कभी खुद की।

एक एक रिश्ते के बोझ तले
खोता जा रहा हूँ अपनी साँसें,
खुद को खोकर सबको खुश रखने की
ये जंग अब बस बेमानी सी लगती है।

तोड़ दो मुझसे जुड़े सारे सपने,
मुझे बस जीने दो अपनी तरह—
बिना किसी के एहसासों का कर्ज़,
बिना किसी की उम्मीदों का बोझ…”

भावार्थ: यह पंक्तियाँ उस थकान को व्यक्त करती हैं जब इंसान दूसरों की उम्मीदों को पूरा करते-करते खुद ही खो जाता है। अब बस खुद के लिए जीने की चाहत है।

क्या आप भी कभी ऐसा महसूस करते हैं? 💔

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